Ganesh Chaturthi 2021 : जो हमारे लिए भी शुभ हो और पर्यावरण के लिए भी

गणपति बप्पा मोरिया। मंगलमूर्ति मोरिया। गणेश चतुर्थी का त्यौहार हर साल गणेश जी के जन्मोत्सव के रुप में पूरे भारत में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। हम भगवान गणेश जी को मंगलकर्ता और विघ्नहर्ता वाला मानते हैं। बच्चे, बड़े सभी साल भर इस त्योहार का बेसब्री से इंतजार करते हैं। लेकिन हम इस हर्षोल्लास में जाने या अनजाने में पर्यावरण को नुकसान पंहुचा देते है। आज हम इस लेख में पीओपी से बनी गणपति मूर्ति के नुकसान के बारे में चर्चा करेंगे।
गणेश चतुर्थी को विनायक चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। यह हर साल हिंदू कैलेंडर के भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। वैसे तो यह त्योहार पूरे देश में मनाया जाता है, लेकिन महाराष्ट्र में गणेश चतुर्थी का त्योहार बड़े ही उत्साह और धूमधाम से मनाया जाता है।
इस साल 2021 में गणेश महोत्सव 10 सितंबर से शुरू हो रहा है। हर गली और मोहल्ले में गणेश जी का उत्सव मनाने के लिए पंडाल तैयार किये जाते हैं। इस दिन गणपति बप्पा की प्रतिमा घरों और पण्डालों में स्थापित करते हैं। गणेश उत्सव 11 दिन तक चलता है। आने वाले दस दिनों तक सच्चे मन से गणपति की पूजा की जाती है।
लोक मान्यताओं के अनुसार 11 वे दिन, अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान गणेश की मूर्ति को पवित्र नदियों या जलाशयों में विसर्जित किया जाता है।

गणेश चतुर्थी पर हम गणपति बप्पा के आगमन और स्वागत की तैयारियां पहले से ही शुरू कर देते हैं। ऐसे में पीओपी यानि कि प्लास्टिक ऑफ पेरिस और कैमिकल वाले रंगों से बनी मूर्तियां बाजार में बिकती हैं। ये मूर्तियां देखने में तो सुन्दर होती है लेकिन ये पर्यावरण के लिए बेहद हानिकारक हैं। क्योंकि एक समय के बाद गणपति प्रतिमा को विसर्जित करना होता है।
लेकिन क्या आप जानते है पीओपी से बनी हुयी गणपति प्रतिमा का नदियों में विसर्जन करने से पर्यावरण और हमारे स्वास्थ्य पर इसका क्या असर होता है?
पीओपी से बने गणपति प्रतिमाओं से पर्यावरण को होने वाला नुकसान
- पीओपी में जिप्सम, सल्फर, फॉस्फोरस और मैग्निशियम पाया जाता है।
- मूर्तियों में उपयोग किए जाने वाले रंगों में पारा, सीसा, कैडमियम और कार्बन होता है, जिससे पानी में एसिड बनता है। ये रंग सेहत के लिए बेहद हानिकारक होते हैं। जब इन्हें नदियों या जल में विसर्जित किया जाता है तो ये मूर्तियाँ उस जल को प्रदूषित कर देती हैं।
- पीओपी बहुत सख्त होता है, इसलिए यह पानी में जल्दी नहीं घुलता हैं। इससे पानी की गुणवत्ता प्रभावित होती है। जबकि पानी में घुलने पर पीओपी पानी की सतह पर जमा हो जाता है।
- इन मूर्तियों के रासायनिक रंग पानी में मिल जाते हैं और बाद में इस पानी का उपयोग खाना पकाने और नहाने के लिए किया जाता है। ऐसे पानी के इस्तेमाल से लोग बीमार भी हो जाते हैं। प्रदूषित पानी के उपयोग से त्वचा संबंधी रोग भी होते हैं।
- डंपिंग एरिया बढ़ने के साथ-साथ नदी की गहराई कम होती जाती है।
- इस पानी का उपयोग कृषि कार्यों में भी किया जाता है। ऐसे में दूषित पानी से उगाई जाने वाली फसलों पर भी काफी असर पड़ता है और सब्जियों के साथ-साथ हानिकारक तत्व भी घर में पहुंच जाते हैं।
- इंसान ही नहीं यह पानी पेड़-पौधों, जानवरों और पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचाता है।
- पीओपी से बनी प्रतिमा के कारण जलीय जीवों को सबसे ज्यादा कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
- इसके साथ ही यह जलाशय के जल निकायों को भी प्रभावित करता है।
Eco Friendly गणपति प्रतिमाओं के फायदे
इन्हीं सब कारणों को देखते हुए अब लोगों में Eco Friendly Ganesha प्रतिमाओं की ओर रुझान बढ़ रहा है। पीओपी से बनी मूर्तियों की तुलना में Eco Friendly गणपति की मूर्तियां पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाती हैं। मिट्टी, हल्दी, आटा, फिटकरी आदि का उपयोग करके घर पर ही गजानन की Eco Friendly मूर्तियां बनाई जा सकती हैं।
इसके अलावा, इको फ्रेंडली प्रतिमाएं बाजारों में भी आसानी से मिल जाती हैं। सुंदर कच्चे और नैचुरल कलर का उपयोग करके इन मूर्तियों को सुंदर बनाया जाता है। ये मूर्तियां पानी में जल्दी घुल जाती हैं। जिससे यह जलाशय के मार्ग को अवरुद्ध भी नहीं करती है और जलीय जीवों को भी इससे कोई नुकसान नहीं पहुंचाता है। Eco Friendly मूर्तियां न तो पर्यावरण को नुकसान पहुंचाती हैं और न ही इनसे बीमारियों के फैलने का डर रहता है।
इसलिए हम सभी को गणेशोत्सव को इको फ्रेंडली तरीके से मनाना चाहिए। जो पर्यावरण के हित को ध्यान में रखते हुए लोगों को इस त्योहार को मनाने के लिए जागरूक करेगा। तभी इस पर्व का महत्व और भी बढ़ जाएगा।
तो क्यों न इस बार हम संकल्प लें कि हम घर पर ही Eco Friendly Ganesha जी बनाएं या बाजार से इको फ्रेंडली गणेश जी खरीदें। जो हमारे लिए भी शुभ हो और पर्यावरण के लिए भी।
ckixz8